गौ-आधारित जैविक खेती
जैविक खेती, शांतिधारा योजना एक विशेष पहलू है। लगभग पांच दशक पूर्व हरित क्रांति की स्थापना से पहले भारत में गौवंश आधारित खेती ही प्रचलन में थी। बीच के वर्षों में रासायनिक खाद और रासायनिक कीटनाशक का उपयोग बढ़ने से किसानों की उपज तो बढ़ने लगी पर समय के साथ उनके खेत प्राकृतिक तत्वों से विहीन हो गए। इसके अन्य दुष्परिणाम भी हुए जिसमें मुख्य रूप से भोजन में रासायनिक तत्वों के मिलने से लोगों के स्वास्थ में भारी गिरावट आई। कैंसर, मधुमेह और हृदय रोग जैसे भीषण रोग अशुद्ध खाद्य के कारण ही हो रहे हैं। आधुनिकरण के इस युग में सस्ती बिजली और ट्रैक्टर के आने से बैल की उपयोगिता समाप्त हो गई। और अब पैदा होते ही बैलों को कत्लखानो को बेच दिया जाता है।
किसान को अधिक उपज के लालच में फंसा लिया गया और, वो सोचने लगे कि दीर्घकाल तक लाभ बढ़ता ही रहेगा, पर ऐसा हुआ नहीं। लाभ का मुख्य हिस्सा तो रसायन बेचनी वाली कंपनियों के हाथ ही लगा। अधिकतम किसान तो आज भी कर्ज में ही जी रहे हैं। ऐसे में न उनके पास उनकी उपजाऊ भूमि रही और ना ही पर्याप्त आमदनी। किसान तो बड़े व्यापारियों के गुलाम ही हो गए।
गुरूदेव का भाव है कि किसान भाई जो अन्नदाता है वह जैविक खेती के माध्यम से ही स्वाधीन हो सकते हैं।
किसानों के आत्मसम्मान को बल देने के लिए और उनके विश्वास को वापस लाने के लिए शांतिधारा जैविक खेती योजना के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षण, जैविक खाद और गौवंश वितरण किया जाता है।
किसानों के खेतों के जैविकरण में लगभग तीन वर्ष का समय लगता है। इस अंतराल किसान को जैविक खाद डालने से लेकर समय-समय पर मृदा परीक्षण भी शांतिधारा परीक्षण प्रयोगशाला में ही किया जाता है।
शांतिधारा में लगभग 40 एकड़ भूमि में प्रयोगात्मक जैविक खेती का मुख्य उदेश्य किसानों को जैविक खेती के आर्थिक लाभ को दर्शाना तो है ही, साथ ही जैविक खेती के सभी पहलुओं को सिखाना भी है। इससे किसान भाइयों में जैविक खेती के प्रति विश्वास, रुचि और कार्य कौशल विकसित हो रहा है।
गुरूजी का भाव है की शांतिधारा के इस जैविक खेती योजना से अधिक से अधिक भारत के किसान लाभान्वित हों और दूसरे किसानों के लिए उदाहरण बनें। जिससे भारत के अन्नदाता, स्वास्थदाता भी बनें और वे अपना खोया हुआ आत्मविश्वास और गौरव पुनः स्थापित कर सकें।
गुरूजी भारत के ऐसे स्वर्णिम भविष्य की कल्पना करते हैं, जब खेती-किसानी से दूर शहरों की तरफ भाग रहे किसानों की नई पीढ़ी घर वापस लौटेगी और गौवंश आधारित खेती को अपनाकर ग्रामीण जीवन सुख, शांति और सम्पन्नता को महसूस करेगा।
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