सप्तम मासानुमासिक कल्प (7th Masanumasik kalp)
सप्तम मासानुमासिक कल्प (7th Masanumasik kalp)
मासानुमासिक कल्प - सप्तम मास
लाभ:-
1.फैट बढ़ाने मैं मदद करता है।
2. मस्तिष्क का विकाश तेजी से करने में मदद करता है।
3. हड्डियों को विकसित करने में मदद करता है परंतु कोमल रखती हैं।
4. गर्भ में शिशु का जगह बदलते रहने में मदद करता है।
5. अगर शिशु का किसी कारण वाश पूर्व प्रसव हो जाए तो जीवित रहने में मदद करती है।
6. शिशु के पलके खोलने में मदद करता है।
7. मांसपेशियों एवं फैट का विकास तेजी से करने में मदद करती है।
8. इस माह के अंतिम सप्ताह तक शिशु की लंबाई 15.75 इंच तथा वजन 1600 ग्राम तक हो जाती है।
9. आत्मा का वास :- गर्भोउपनिषद के अनुसार शिशु में सातवें माह में ही, आत्मा का वास करने में मदद करती है।
10. शिशु में उपरोक्त विकाश के कार्य को क्रियान्वित करने में सप्तम मास की मासानुमासिक की औषधीयों की अहम भूमिका होती है।
सधौर प्रथा :- सातवां माह में गर्भ में पल रहे शिशु को फैट की आवश्यकता होती है। इसलिए झारखंड राज्य में गर्भवती पुत्री के ससुराल में पिता तथा रिश्तेदारों के घर से बारी - बारी नौ प्रकार का पकवान भेजा जाता है।
प्रयुक्त सामग्री -
1. पानी फल (सिंघाड़ा) ,2. कमल कन्द ,3. मुनक्का , 4.कसेरू ,5. मुलेठी ,6. धागा मिश्री
सेवन विधि - बैधकीय परामर्श अनुसार अथवा
10 - 10 ग्राम सुबह - शाम दूध के साथ सेवन करें।
सावधानियां :-
1. संतुलित आहार एवं अल्पाहार बार-बार लें।
2. नियमित हल्का व्यायाम करें।
3. पर्याप्त आराम करें।
4. सीढ़ियां चढ़ने से बच्चे या रेलिंग पकड़ कर चढें।
5. अधिक समस्या होने पर बैध जी का परामर्श लेते रहें।
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